THE FOUR AGREEMENTS BY DON MIGUEL RUIZ BOOK SUMMARY IN HINDI

हेलो दोस्तों । थॉट फॉर ग्रोथ ब्लॉग में आपका स्वागत है । आज हम इस पोस्ट में आपके लिए लेकर आए है “Don Miguel Ruiz” की “The Four Agreements book summary in Hindi” । इस किताब में  लेखक इंसान के जीवन की मूलभूत धारणाओं पर प्रकाश डालते हैं । लेखक हमें अपने साथ करने के लिए चार ऐसे समझौते बताते हैं जो हमारे जीवन में स्वतंत्रता , सच्ची खुशी और प्रेम का संचार करती है । तो चलिए इस बुक की समरी शुरू करते हैं ।

पहला समझौता (FIRST AGREEMENT)

अपने शब्दों के साथ निष्पाप रहें ।

आपको अपने साथ जो पहला समझौता करना है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है परंतु उसे निभाना उतना ही कठिन है ।

पहला समझौता है अपने शब्दों के साथ निष्पाप रहें। यह बहुत सीधा और सरल समझौता लगता है लेकिन यह बहुत शक्तिशाली है ।

आपके शब्दों में बहुत ताकत है। शब्द ईश्वर से मिला हुआ उपहार है। शब्दों के माध्यम से ही हम अपनी रचनात्मक शक्ति को प्रकट करते हैं और शब्दों से ही हर चीज वास्तव में आती है ।

शब्दों के दो पहलू होते हैं । शब्दों के जरिए इंसान अपने लिए सुंदर संसार का निर्माण भी कर सकता है और शब्दों के माध्यम से वह अपने आसपास का संसार तबाह भी कर सकता है ।

यदि शब्दों का गलत उपयोग किया जाए तो वह जीते जागते नर्क को जन्म दे सकता है । इसके विपरित यदि शब्दों का उचित उपयोग किया जाए तो इस धरती पर प्रेम, सुंदरता और स्वर्ग का निर्माण हो सकता है । यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने जीवन में शब्दों का प्रयोग कैसे करेंगे?

हिटलर के उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि किस प्रकार शब्दों के गलत प्रयोग से पूरा विश्व विनाशकारी महायुद्ध में उलझ गया ।

अपने शब्दों के साथ निष्पाप होने का अर्थ है कि आप शब्दों को अपने विरुद्ध प्रयोग में नहीं ला रहे हैं । अगर आप अपने एक रिश्तेदार को सड़क पर देखकर मूर्ख कहते हैं तो इसका अर्थ होगा कि आप अपने शब्दों का उस रिश्तेदार के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं । लेकिन ऐसा करके सही मायने में आप अपने शब्दों को अपने ही खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं । इसके पीछे एक कारण है जिस रिश्तेदार को आप  मूर्ख कहते हैं वह आप पर नाराज होगा आप से नफरत करने लगेगा और उस व्यक्ति की यह नफरत आपके लिए उचित नहीं है ।

अगर आप गुस्सा होकर अपने मन की सारी नकारात्मक भावनाएं सामने वाले तक पहुंचाते हैं तो वह भावना सामने वाले के लिए नहीं बल्कि आपके लिए ही जहर का काम करती है ।

अपने शब्दों के साथ निष्पाप होने का अर्थ है कि आप अपनी उर्जा का उपयोग सही तरीके से करेंगे । इसके साथ ही सत्य और प्रेम की दिशा में उस ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे ।

अधिकतर लोग अपने भीतर का गुस्सा, जलन ,नफरत अहंकार और दुश्मनी को प्रकट करने के लिए जहर की भांति शब्दों का उपयोग करते हैं । शब्दों के रूप में मिले इस जादू के उपहार का उपयोग इंसान अपने ही खिलाफ करता है और उसे यह पता भी नहीं चलता ।

शब्द हमारा ध्यान आकर्षित करके हमारे मन में प्रवेश करते हैं । इन शब्दों को जब विश्वास का साथ मिलता है तो वह धारणाओं का निर्माण करते हैं फिर यह हमारे जीवन को सकारात्मक या नकारात्मक दृष्टिकोण की ओर ले जाते हैं ।

यदि आप मुक्त और खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं तो आपको इस पहले समझौते को अपने जीवन में उपयोग में लाना आवश्यक है । शब्दों में बहुत शक्ति होती है जिसका उपयोग प्रेम और खुशियां बांटने में करें । शब्दों के जादू का सकारात्मक तरीके से अपने जीवन में उपयोग करें और इसकी शुरुआत खुद से करें ।


दूसरा समझौता(SECOND AGREEMENT)

किसी भी बात को कभी भी निजी तौर पर ना लें।

आपके आसपास जो भी घट रहा हो उसे निजी तौर पर ना लें ।

यदि कोई आप को बिना जाने पहचाने सड़क पर देख कर कहता है कि आप मूर्ख हैं तो वास्तव में ऐसा वह अपने बारे में कह रहा है आपके बारे में नहीं । लेकिन यदि आप उस व्यक्ति की बात सुनकर दुखी होते हैं तो इसका अर्थ है कि आप उसके बातों से सहमत हैं और खुद को मूर्ख मानते हैं ।

आप खुद को जरूरत से अधिक महत्व देते हैं इसलिए ऐसी बातों में उलझते हैं । दरअसल व्यक्तिगत तौर पर हम अपने आप को इतना अधिक महत्व देते हैं कि हमें लगने लगता है कि हर बात हमारे बारे में ही हो रही है । अपने परवरिश के दौरान ही हम हर बात को व्यक्तिगत तौर पर लेना सीख लेते हैं । हमें लगता है कि हर बात के लिए केवल मैं ही जिम्मेदार हूं ।

अगर वाकई कोई घटना व्यक्तिगत हो जैसे कोई आपके बारे में गलत शब्द कह कर आप का अपमान करें या आपको बार-बार ताना मारे तो ऐसे समय पर भी आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सामने वाला जो कुछ भी बोलता है । वह आपके साथ जैसा भी व्यवहार करता है यह आपके बारे में वह अपनी खुद की राय बताता है ।  यह समझे कि यह केवल उसके मन की धारणा  मात्र है । यह उसका दृष्टिकोण है जो उसके परवरिश से निर्माण हुआ है ।

जब आप बातों को निजी तौर पर लेते हैं तो आपको ही तकलीफ होती है । ऐसे में आप अपनी धारणाओं का बचाव करने लगते हैं और इसी से संघर्ष शुरू होता है । आप छोटी सी बात का बतंगड़ बना लेते हैं क्योंकि आपके मन में खुद को सही और बाकी सब को गलत साबित करने की होड़ लग जाती है ।

लोग आपके बारे में जो भी राय रखते हैं वह सच नहीं होती लेकिन यह भी जरूरी नहीं है कि आप अपने बारे में जो राय रखते हैं वह भी सच ही हो इसलिए आप अपने बारे में जो भी कहते हैं उसे भी दिल से ना लगा ले ।

जब आप बातों को निजी तौर पर ना लेने की आदत खुद में विकसित करते हैं तब वास्तव में आप अपने जीवन की कई समस्याओं से निपटने की क्षमता का निर्माण करते हैं । इस एक आदत को जीवन का अंग बना लेने से आपका गुस्सा, जलन, नफरत और निराशा की भावनाएं भी आपके पास नहीं आती है ।

किसी भी बात को निजी तौर पर ना लेने के इस समझौते को यदि आप अपने जीवन का अहम हिस्सा बना लेते हैं तो संसार का कोई भी इंसान आपको नर्क की अवस्था में नहीं लेकर जा सकता है । आपको एक अनोखी आजादी का अनुभव होता है । आप किसी के भी शब्दों में उलझते नहीं हैं और कोई भी आपको अपने शब्दों की शक्ति से सम्मोहित नहीं कर पाता है ।

इस समझौते के अभ्यास के बल पर आप अपनी उन सूक्ष्म धारणाओं और गलत आदतों को तोड़ सकते हैं जो आपके लिए कष्ट का कारण बनती है ।

जब आप इस समझौते का पालन करते हैं तब दूसरे लोगों की बातों पर विश्वास रखने के लिए आप बाध्य नहीं होते हैं । कोई भी निर्णय लेते समय आप केवल अपनी ही राय को अधिक महत्व देते हैं । आप किसी और के कार्य के लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं । आपको केवल अपने कार्य की जिम्मेदारी लेनी होती है परिणाम स्वरूप दूसरों के गलत व्यवहार से या उनके गलत शब्दों से आप दुखी नहीं होते ।


तीसरा समझौता (THIRD AGREEMENT)

पहले से धारणाएं ना बनाएं।

तीसरा समझौता कहता है कि आपको पहले से कोई धारणा या मान्यता नहीं बनाना चाहिए और ना ही कोई अनुमान लगाना चाहिए ।

इंसान को हर चीज के बारे में पहले से ही एक धारणा बनाने की आदत होती है । दरअसल धारणा बनाने में कोई दिक्कत नहीं होती । समस्या तो तब आती है जब हम अपनी धारणाओं को सच मानने लगते हैं । यहां तक कि अपनी धारणाओं को सही साबित करने के लिए हम कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं ।

दूसरे लोग क्या सोच रहे होंगे या क्या कर रहे होंगे हम इस बारे में कोई ना कोई धारणा बना लेते हैं और उसे हम निजी तौर पर ले लेते हैं । इसके पश्चात हम अपनी धारणाओं के आधार पर लोगों को दोषी ठहराने लगते हैं । इस तरह की धारणा बनाकर और गलत अनुमान लगाकर हम बेवजह ही अपने जीवन में परेशानियों को न्योता देते हैं । कई बार हमारी धारणाओं से ही गलतफहमीओं का निर्माण होता है जिन्हें हम निजी तौर पर ले लेते हैं ।

लोगों के बीच होने वाली सारी लड़ाइयां दूसरों के बारे में पूर्वानुमान लगाने और बातों को निजी तौर पर लेने की वजह से ही शुरू होती है ।

कोई भी धारणा बनाने से पहले हमें सामने वाले से सवाल पूछ कर उसकी बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। क्योंकि जब भी कोई नई धारणा बनती है तो वह समस्या को ही न्योता देती है ।

हम वही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं । हम वही सुनते हैं जो हम सुनना चाहते हैं । चीजों को उनके असली रूप में देखने और सुनने की हमारी तैयारी होती ही नहीं है । वास्तव में हमें बेबुनियाद सपने देखने की आदत होती है । हम अक्सर कल्पना में जीते हैं इसलिए धारणा तुरंत बना लेते हैं । मगर कोई भी धारणा बनाने के बाद जब सत्य का हमें पता चलता है तो हमारे झूठ का बुलबुला फूट जाता है और तब हमें पता चलता है कि हम जो सोच रहे थे वैसा तो था ही नहीं ।

अगर आप चाहते हैं कि आप दूसरों के बारे में कोई धारणा  ना बनाएं तो आपको प्रश्न पूछना सीखना होगा । आपका संवाद स्पष्ट होना चाहिए । अगर आपको कुछ समझ में ना आए तो फिर से पूछना चाहिए जब तक कि आपकी सारी शंकाओं का समाधान ना होता है । आपको सवाल पूछते रहना चाहिए यदि आपकी सारी शंकाएं खत्म हो जाए तो भी इस भ्रम में ना रहे कि हमें सब कुछ पता है ।

आप जो भी चाहते हैं उसे कहने का साहस रखें । हर किसी को अपनी हां या ना कहने का अधिकार होता है । जिस तरह आप सवाल पूछने का अधिकार रखते हैं उसी तरह हर किसी को आप से सवाल पूछने का अधिकार है और आपको हां या ना कहने का अधिकार है । अगर आपको कोई बात समझ में ना आए तो बिना कोई धारणा बनाए उस बात को दोबारा से पूछ ले । जिस दिन आप धारणाएं बनाने के बजाय स्पष्ट व सटीक संवाद करना सीख लेंगे उस दिन आप भावनात्मक जहर से मुक्त हो जाएंगे । बिना धारणाओं के कहे गए शब्द भी शुद्ध हो जाएंगे ।

इस एक समझौते को अपनी आदत बनाने से आप का संपूर्ण जीवन का कायाकल्प हो जाएगा ।


चौथा समझौता (FOURTH AGREEMENT)

अपनी ओर से हमेशा सर्वश्रेष्ठ कार्य करें।

चौथा और आखिरी समझौता जो हमें अपने साथ करना है वह है । अपनी ओर से हमेशा सर्वश्रेष्ठ कार्य करना चाहिए ।

किसी भी हालत में अपनी ओर से हमेशा सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें । ना कम और ना अधिक । लेकिन यह याद रखें कि आपका किसी कार्य में किया गया सर्वश्रेष्ठ प्रयास हमेशा हर कार्य में सर्वश्रेष्ठ ही होगा ऐसा नहीं है । इस संसार में सब कुछ जीवंत है और वह हर पल बदल रहा है । इसलिए कई बार आपका सर्वश्रेष्ठ प्रयास उच्च गुणवत्ता का हो सकता है और कई बार उस गुणवत्ता का नहीं होगा ।

आपका सर्वश्रेष्ठ कार्य इस बात पर निर्भर करता है कि आप बेहतरीन, खुश और जीवंत महसूस कर रहे हैं या आपको गुस्से व जलन का एहसास हो रहा है । आपकी प्रतिदिन की भावना के अनुसार आप का सर्वश्रेष्ठ प्रयास भी हर पल में बदल सकता है । यह हर घंटे या हर दिन अलग-अलग हो सकता है ।

गुणवत्ता की परवाह किए बिना अपनी ओर से हमेशा सर्वश्रेष्ठ कार्य करते रहें । अपने सर्वश्रेष्ठ से ना कम और ना अधिक अच्छा कार्य करें । यदि आप अपने सर्वश्रेष्ठ से भी बढ़कर और अच्छा कार्य करने का प्रयास करेंगे तो उसमें आपकी अधिक ऊर्जा नष्ट होगी और कार्य वैसा होगा नहीं जैसा आप करना चाहते थे । जब आप आवश्यकता से अधिक कुछ करते हैं तो आप अपने मूल स्वभाव के विपरीत कार्य करते हैं । ऐसा करने से आपको अपना लक्ष्य प्राप्त करने में अधिक समय लगता है । लेकिन यदि आप अपनी काबिलियत से भी बहुत कम करते हैं तो आपको निराशा, अपराध बोध और पश्चाताप महसूस होता है ।

इस समझौते को लेकर एक उदाहरण से समझाते हैं ।

एक इंसान अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पाने हेतु एक बौद्ध मठ में जाता है ताकि वहां के गुरु से मदद ले सके । मठ के भीतर उसे एक बौद्ध गुरु दिखाई देते हैं जो उस समय ध्यान कर रहे थे । वह इंसान उनके सामने जाकर बैठ जाता है । जैसे ही वे गुरु ध्यान से उठते हैं  वह इंसान तुरंत उनसे अपनी बात कहना शुरू कर देता है । वह बौद्ध गुरु से पूछता है कि यदि मैं प्रतिदिन 4 घंटे ध्यान करता हूं तो क्या अपने कष्टों से मुक्त होकर मोक्ष पा सकता हूं? उसे देखकर गुरु कहते हैं अगर तुम दिन में 4 घंटे ध्यान करो तो 10 वर्ष में मोक्ष पा लोगे ।

फिर उस इंसान को लगा कि वह और बेहतर कैसे कर सकता है इसलिए उसने पूछा कि गुरु जी यदि मैं दिन में 8 घंटे ध्यान करता हूं तो मोक्ष पाने में कितना समय लगेगा ? गुरु ने उसे फिर से देखा और कहा कि यदि तुम दिन में 8 घंटे ध्यान करो तो शायद 20 वर्ष में मोक्ष पा लोगे । इस बात को सुनकर वह इंसान चौक गया और सोचने लगा कि अधिक ध्यान करने पर दोगुना समय क्यों लगेगा ?

इस बात का गुरु ने जवाब दिया कि तुम यहां अपने जीवन या आनंद को समर्पित करने नहीं आए हो । यहां आने के पीछे तुम्हारा उद्देश्य है खुशी और प्रेम से भरा जीवन जीना । अगर तुम दो घंटों के ध्यान को बेहतर तरीके से करने के बजाय दिन के 8 घंटे ध्यान को दोगे तो थकान के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा और तुम जीवन का आनंद खो दोगे ।

ध्यान के दौरान एक समय ऐसा आता है जिसमें मिली हुई उर्जा तुम्हें अपना जीवन खुशी से जीने के लिए प्रेरणा देगा मगर अधिक समय तक ध्यान करने के प्रयास में तुम वह समय गवा बैठोगे । भले ही तुम कम समय तक ध्यान करो लेकिन वह सर्वश्रेष्ठ करो । इसी से तुम्हारा जीवन अत्यंत प्रेम, खुशी और उत्साह से भर जाएगा ।

अगर आप केवल अपने काम पर ध्यान दें और किसी भी उम्मीद के बिना कार्य करें तो आपको उम्मीद से भी बढ़कर आनंद मिलेगा । पुरस्कार की अपेक्षा के बिना कार्य करेंगे तो उससे कहीं अधिक आप हासिल कर सकते हैं जिसके बारे में आपने कल्पना तक नहीं की होगी । अगर हमें अपने काम से प्रेम है तो हम हमेशा सर्वश्रेष्ठ ही करना चाहेंगे तभी हम सही मायने में अपने जीवन का आनंद लेंगे । फिर हम अपने काम का आनंद लेंगे, काम से उबेंगे नहीं और कभी भी निराश नहीं होंगे ।

जब आप इन चारों समझौतों का सम्मान करते हैं और अपने जीवन में अपनाना शुरू करते हैं तो ऐसा कोई कारण नहीं बसता है कि आप नर्क जैसा जीवन व्यतीत करें । यदि आप अपने शब्दों के साथ निष्पाप रहते हैं, किसी भी बात को निजी तौर पर नहीं लेते हैं, कोई भी नई धारणा नहीं बनाते हैं और अपनी ओर से हर कार्य को सर्वश्रेष्ठ करते हैं । तो आप एक बेहतर जीवन जी सकते हैं और निश्चित ही आपके जीवन पर आपका पूरा नियंत्रण होगा । 


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The Four Agreements book

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